कोई किसी को सुख और दुख नहीं देता मनुष्य अपने कर्मों से ही सुख और दुख प्राप्त करता है:आशुतोष महाराज
तेघड़ा बाजार पुराना ब्लाक स्थित रसोई महल परिणय गार्डन परिसर में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित रामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ कार्यक्रम में सर्वश्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य शिष्याओं ने रामचरितमानस और गीता वर्णित ज्ञान यज्ञ का वर्णन करते हुए कहा कि “ काहु न कोउ सुख-दुख कर दाता । निज कृत कर्म भोग सबु भ्राता’’ अर्थात कोई किसी को सुख या दुख नहीं देता मनुष्य अपने कर्मों से ही सुख दुख प्राप्त करता है । पर विचार करना होगा कि हम कर्म बंधन से किस प्रकार मुक्त हो सकते हैं । शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा ने जो हमारे भाग्य में लिखा उसे कोई मिटा नहीं सकता परंतु जब पूर्ण संत की शरण में जाने से परमात्मा द्वारा लिखा-लेख भी मिट जाता है अतः कर्म बंधन से मुक्ति की युक्ति है – पूर्ण संत द्वारा प्राप्त “ब्रह्मज्ञान’’। जब पूर्ण संत जीवन में आते हैं तो वह हमारे भीतर ज्ञानाग्नि प्रकट करते हैं जिस ज्ञान अग्नि में हमारे कर्म धीरे-धीरे जलकर स्वाहा हो जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण गीता में भी कहते हैं कि “ ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ।’’ पूर्ण संत जब ज्ञान प्रदान करते हैं तब हृदय में स्थित परमात्मा का प्रगटिकरण होता है । भगवान का दर्शन होता है और यह मनुष्य जीवन मिला ही है उस भगवान के दर्शन को प्राप्त करने के लिए । भगवान दिव्य है इसलिए भगवान का दर्शन प्राप्त करने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से गीता में कहते हैं कि “ दिव्यं ददामि ते,चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्’’। अर्थात मैं तुझे वह अतीन्द्रिय, अलौकिक रूपको देखनेकी सामर्थ्यवाले दिव्य नेत्र प्रदान करता हूं जिससे तुम अतीन्द्रिय मेरी ईश्वरीय योग शक्ति को देख सकेगा। जिस प्रकार मेहंदी के पत्तों में रंग है लेकिन प्रकट करने की एक युक्ति होती है ठीक इसी प्रकार भगवान हमारे अंदर है देखने की युक्ति चाहिए और वह युक्ति है “ दिव्य दृष्टि’’। भगवान को दर्शन मात्र वेदों के पठन-पाठन तथा कथा कहानियों को सुनने से नहीं होता । भगवान दिव्य है तो दर्शन के लिए दिव्य नेत्र चाहिए । कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित तरंग तेघड़ा एवं श्याम शखी नारी शक्ति तेघड़ा शकुन देवी, सुशिला देवी,शशि टिवडे़वाल,सुधा सुल्तानियां,कविता केडिया एवं वर्षा अग्रवाल सहित अन्य लोगों का सहयोग सराहनीय रहा।